Wednesday, August 8, 2007

महामना पंडित मदन मोहन मालवीय और पत्रकारिता

राष्ट्रभाषा हिन्दी और देवनागरी लिपि आन्दोलन के सूत्रधार महामना मदन मोहन मालवीय जी के विलिक्षण व्यक्तित्व में एक साथ निर्भीक वक्ता, श्रेष्ठ पत्रकार, प्रखर अधिवक्ता, कुशल प्राध्यापक, श्रेष्ठ समालोचक, उत्कृष्ठ कवि व लेखक और जननायकत्व का समुच्चय था। महामना मालवीय जी ने अपने अध्यापन काल में ही सन् १८८६ ई में कलकत्ता में आयोजित भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के द्वितीय अधिवेशन में भाग लिया था। महामना मालवीय जी की वक्तता से प्रभावित होकर अपने अध्यक्षीय उद्बोधन में दादा भाई नौरोजी ने कहा कि "इनकी वाणी में भारतमाता की वाणी है।" इसी अधिवेशन में उपस्थित कालाकांकर के राजा रामपाल सिंह ने महामना मालवीय जी के प्रभावशाली भाषण से मंत्रमुग्ध होकर उनसे अपने दैनिक "हिन्दोस्थान" के संपादन का दायित्व संभालने का अनुरोध किया। अन्ततः अध्यापन कार्य छोड़कर सन् १८८६ ई में महामना मालवीय जी ने "हिन्दोस्थान" का संपादकत्व स्वीकार कर लिया और यहीं से मालवीय जी के यशस्वी पत्रकारिता जीवन का श्रीगणेश हुआ। महामना के पत्रकारिता जीवन का द्वितीय पड़ाव "अभ्युदय" का संस्थापना-संपादन (सन् १९०७ ई) था। इस पत्र के माध्यम से महामना मालवीय जी ने संपादकीय स्वतन्त्रता की लड़ाई भी लड़ी। महामना मालवीय जी ने लगभग दो वर्षों तक इसका संपादन किया। २४ नवंबर, सन् १९०९ को विजयादशमी के शुभ दिन "लीडर" नामक अंग्रजी पत्र का प्रकाशन इलाहाबाद से प्रारम्भ हुआ। इस पत्र के माध्यम से महामना मालवीय जी स्वतंत्रता और पत्रकारों के स्वाभिमान की रक्षा तथा अहिन्दी भाषी क्षेत्रों तक अपनी बात पहुंचाना चाहते थे। सन् १९२९ ई में महामना मालवीय जी की प्रेरणा से इसके हिन्दी संस्करण "भारत" का भी प्रकाशन प्रारम्भ हुआ। "लीडर" के प्रकाशन के एक वर्ष के पश्चात ही मालवीय जी के प्रयास से "मर्यादा" नामक पत्र का भी प्रकाशन शुरू हुआ। मालवीय द्वारा राजनीतिक समस्याओं पर लिखे गए अनेक निबन्ध इस पत्र में प्रकाशित हुए। सन् १९२४ ई में नई दिल्ली से प्रकाशित अंग्रजी दैनिक "हिन्दुस्तान टाइम्स" का भी प्रबन्धन आपने स्वीकार कर लिया और दीर्घकाल तक उसकी प्रबन्ध समीति के अध्यक्ष रहे। आपके ही सत्प्रयास से प्रारम्भ "हिन्दुस्तान" नामक इसका हिन्दी संस्करण आज भी प्रकाशित हो रहा है। २० जुलाई, सन् १९३३ ई को महामना मालवीयजी ने काशी से "सनातन धर्म" नामक साप्ताहिक पत्र निकाला, देशकाल और परिस्थिति से प्रेरित था। महामना मालवीय जी ने अनेक पत्र-पत्रिकाओं के संचालन में भी अपना बहुमूल्य योगदान दिया। हिन्दी पत्रकारिता के क्षेत्र में महामना मालवीयजी का अवदान अविस्मरणीय रहेगा।

1 comment:

Shastri JC Philip said...

ऐसी महत्वपूर्ण जानकारी पठनीय तरीके से प्रदान करने के लिये आभार -- शास्त्री जे सी फिलिप

हिन्दी ही हिन्दुस्तान को एक सूत्र में पिरो सकती है
http://www.Sarathi.info